'मैं' रश्मि प्रभा एक बार फिर आपके सामने हूँ ... कैलाश शर्मा जी के 'मैं' के साथ ...
भूल जाते
अस्तित्व सम्पूर्ण का,
देखते केवल
एक अंश जीवन का
मान लेते
उसको ही सम्पूर्ण सत्य
वही बन जाता
हमारा
स्वभाव, प्रकृति, अहम् और ‘मैं’.
नहीं होता
परिचय सम्पूर्ण से
केवल बचपने
प्रयासों द्वारा,
जगानी होती
बाल सुलभ उत्सुकता,
बचपना है एक
अज्ञानता
एक भय नवीनता
से,
बचपन है
उत्सुकता और मासूमियत
जिज्ञासा
जानने की प्रति पल
जो कुछ आता
नवीन राह में,
नहीं ग्रसित
पूर्वाग्रहों
पसंद नापसंद, भय व विचारों
से,
देखता हर पल
व वस्तु में
आनंद का असीम
स्रोत.
जैसे जैसे
बढ़ते आगे जीवन में
अहंकार जनित ‘मैं’,
घटनाएँ, विचार और
अर्जित ज्ञान
आवृत कर देता
मासूमियत बचपन की,
देखने लगते
वर्तमान को
भूतकाल के
दर्पण में,
भूल जाते
अनुभव करना
प्रत्यक्ष को
बचपन की दृष्टि से.
जीवन एक गहन
रहस्य
अपरिचित
दुरूह राहें
अनिश्चित व
अज्ञात गंतव्य,
बचपन की
दृष्टि
है केवल
संवेदनशीलता
अनभिज्ञ
भावनाओं
व ‘मैं’ के मायाजाल
से
जो करा सकती
परिचय
हमारे
अस्तित्व के
सम्पूर्ण
सत्य से.
कैलाश जी की लेखनी भी अदभुद ही लिखती है :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंबचपन की दृष्टि बनी रहे सदा तो जीवन कितना सुखद रहेगा।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ...
बेहतरीन रचना साझा की .....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-03-2014) को "स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ" (चर्चा मंच-1562) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
‘मैं’ के मायाजाल से
जवाब देंहटाएंजो करा सकती परिचय
हमारे अस्तित्व के
सम्पूर्ण सत्य से....बहुत सुन्दर
लेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
गहन भावों की सार्थक प्रस्तुति ! बचपन की जिज्ञासु दृष्ट सदैव बनी रहे तो अहम् का उदय और टकराव कभी हो ही ना ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति के साथ बढ़िया रचना , कैलाश सर व रश्मि जी को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ प्राणायाम ही कल्पवृक्ष ~ ) - { Inspiring stories part -3 }
बहुत बहुत आभार रश्मि जी अपने ब्लॉग 'मैं' पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए....लेकिन प्रस्तावना में आपकी शीर्ष रचना, जिसका हमेशा इंतजार रहता है, की कमी खली...आभार
जवाब देंहटाएंकैलाश जी कि शशक्त लेखनी से निकली भावपूर्ण, अर्थपूर्ण रचना .. बहुत लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंउहा-पोह कि स्थिति द्वंद किसी ख़ास से नहीं वरन् अपने आप से
जवाब देंहटाएंजिसने ये कर लिया। उसने मैं के अस्तित्व को पहचान लिया।
सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति आपकी। हार्दिक बधाई
एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: विरह की आग ऐसी है
बहुत सुंदर रचना.. खुद से खुद को टटोलना और यूँ व्यक्त करना, बहुत बड़ी बात है।
जवाब देंहटाएंबचपन है उत्सुकता और मासूमियत
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जानने की प्रति पल
जो कुछ आता नवीन राह में,
नहीं ग्रसित पूर्वाग्रहों
पसंद नापसंद, भय व विचारों से,
देखता हर पल व वस्तु में
आनंद का असीम स्रोत.......:-)
उम्र के साथ आँखों पर चढ़ते चश्मे .....हमें सच से दूर करते जाते हैं...अगर जीवन के किसी भी पहलू को समझना है .....तो एक बालक की कौतुहल भरी दृष्टि चाहिए ....तभी हम उसे उसके सही रंगों में देख सकेंगे ....उसकी असलियत जान पाएंगे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbehtreen rachna ....
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंVery good write-up. I certainly love this website. Thanks!
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