हम के हुजूम में सब 'मैं' होते हैं
हम कोई आविष्कार नहीं करता
हाँ वह 'मैं' को अन्धकार दे सकता है
'मैं' के कंधे पर हाथ रख सकता है
'मैं' की आलोचना कर सकता है ..............
मकसद 'मैं' का होता है
'मैं' न चाहे तो उसे चलाया नहीं जा सकता
विवशता 'मैं' की
विरोध 'मैं' का
व्यूह 'मैं' का
चीत्कार 'मैं' का
'मैं' की हार-जीत 'मैं' से है
हर कारण 'मैं' है
न चाहते हुए भी 'मैं' हँसता है
तो वह उस 'मैं' के अपने निजी कारण हैं
यदि शिकायत है तो 'मैं' से करो
क्योंकि 'मैं' ही 'मैं' को विवश करता है
कारण 'मैं' ही पैदा करता है
पलायन 'मैं' करता है
निवारण भी 'मैं' का होता है
..................................................आत्मा 'मैं', परमात्मा 'मैं' - बाकी सब झूठ !
मैं - रश्मि प्रभा, आज फिर एक बार कैलाश शर्मा जी के 'मैं' के साथ
ढूँढता अपना अस्तित्व मेरा ‘मैं’
जो खो गया कहीं
देने में अस्तित्व अपनों के ‘मैं’ को.
अपनों के ‘मैं’ की भीड़
बढ़ गयी आगे
चढ़ा कर परत अहम की
अपने अस्तित्व पर,
छोड़ कर पीछे उस ‘मैं’ को
जिसने रखी थी आधार शिला
उन के ‘मैं’ की.
सफलता की चोटी से
नहीं दिखाई देते वे ‘मैं’
जो बन कर के ‘हम’
बने थे सीढ़ियां
पहुँचाने को एक ‘मैं’
चोटी पर.
भूल गए अहंकार जनित
अकेले ‘मैं’ का
नहीं होता कोई अस्तित्व
सुनसान चोटी पर.
काश, समझ पाता मैं भी
अस्तित्व अपने ‘मैं’ का
और न खोने देता भीड़ में
अपनों के ‘मैं’ की,
नहीं होता खड़ा आज
विस्मृत अपने ‘मैं’ से
अकेले सुनसान कोने में.
अचानक सुनसान कोने से
किसी ने पकड़ा मेरा हाथ
मुड़ के देखा जो पीछे
मेरा ‘मैं’ खड़ा था मेरे साथ
और बोला अशक्त अवश्य हूँ
पर जीवित है स्वाभिमान
अब भी इस ‘मैं’ में.
स्वाभिमान अशक्त हो सकता
कुछ पल को
पर नहीं कुचल पाता इसे
अहंकार किसी ‘मैं’ का,
नहीं होता कभी अकेला ‘मैं’
स्वाभिमान साथ होने पर.
बड़े भाई के मैं को जान कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंसादर
हम के हुजूम में सब 'मैं' होते हैं
जवाब देंहटाएंहम कोई आविष्कार नहीं करता
हाँ वह 'मैं' को अन्धकार दे सकता है
'मैं' के कंधे पर हाथ रख सकता है
'मैं' की आलोचना कर सकता है ..............
...बहुत सार्थक और सशक्त अभिव्यक्ति..मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार...
वाह दोनों ही अभिव्यक्तियाँ शानदार लगीं ।
जवाब देंहटाएंहम के हुजूम में सब 'मैं' होते हैं...सटीक बात|
जवाब देंहटाएंस्वाभिमान अशक्त हो सकता
कुछ पल को
पर नहीं कुचल पाता इसे
अहंकार किसी ‘मैं’ का,
नहीं होता कभी अकेला ‘मैं’
स्वाभिमान साथ होने पर.
सार्थक अभिव्यक्ति...कैलाश शर्मा सर एवं रश्मि दी को सादर बधाई !!
मैंमेरा और स्वाभिमान का श्रेष्ठ उत्पादन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंवाह …… 'मैं' की तड़प पर भी इतना मुखर हो कर कुछ कहा जा सकता है ......
जवाब देंहटाएंरश्मि जी आभार इन दोनों रचनाओं से परिचित करवाने के लिये
कैलाश जी को भी धन्यवाद
शुभकामनायें
सशक्त, सटीक एवँ स्पष्ट सोच के साथ सार्थक अभिव्यक्तियाँ ! दोनों ही रचनाएं हृदयग्राही हैं ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंdono rachnayein umda.....abhar
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाएँ | फ़िदा :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।
जवाब देंहटाएं"मैं" ही प्रगति है "मैं" ही रुकावट "मैं" जितना अनावश्यक है उतना ही आवश्यक भी है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना...
बढिया, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी दोनों रचनाएं ... मैं और हम का विभाजन स्पष्ट करती ...
जवाब देंहटाएंदोनों ही रचनाएं बहुत बढ़िया हैं..
जवाब देंहटाएं'मैं' ही 'मैं' को विवश करता है
जवाब देंहटाएंकारण 'मैं' ही पैदा करता है
पलायन 'मैं' करता है
निवारण भी 'मैं' का होता है.
'Main' ke vaastavik swaroop ki ye khoj shayad nirantar hai... 'main' bhi talaash kar raha hun..'main' ko!
आदरणीय आपकी यह प्रभावी प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' संकलन में शामिल की गई है।
जवाब देंहटाएंhttp://nirjhar-times.blogspot.com पर आपका स्वागत् है,कृपया अवलोकन करें।
सादर