20 नवंबर, 2013

‘मैं’ एक समस्यायें अनेक !!!

मैं' एक स्वीकार है
मैं भविष्य का शोध,
मैं आगाज़,मैं विनाश 
मैं उपजाऊ, मैं बंज़र 
बंजरता सोच की - जो मैं'के व्यक्तित्व से जुड़ी होती है 
मैं'सकारात्मक न हो 
तो न कोई संरचना सम्भव है 
न ही पलायन !!!   
                   रश्मि प्रभा 











‘मैं’ एक समस्यायें अनेक 
समस्यायें अनेक
रूप अनेक
लेकिन व्यक्ति केवल एक।
नहीं होता स्वतंत्र अस्तित्व
किसी समस्या या दुःख का,
नहीं होती समस्या 
कभी सुप्तावस्था में,
जब जाग्रत होता 'मैं'
घिर जाता समस्याओं से।
मेरा 'मैं'
देता एक अस्तित्व 
मेरे अहम् को 
और कर देता आवृत्त
मेरे स्वत्व को।
मैं भुला देता मेरा स्वत्व
और धारण कर लेता रूप 
जो सुझाता मेरा 'मैं'
अपने अहम् की पूर्ती को।
नहीं होती कोई सीमा 
अहम् जनित इच्छाओं की,
अधिक पाने की दौड़ देती जन्म 
ईर्ष्या, घमंड और अवसाद 
और घिर जाते दुखों के भ्रमर में।

'मैं' नहीं है स्वतंत्र शरीर या सोच,
जब हो जाता तादात्म्य 'मैं' का 
किसी भौतिक अस्तित्व से 
तो हो जाता आवृत्त अहम् से
और बन जाता कारण दुखों  
और समस्याओं का.
कर्म से नहीं मुक्ति मानव की
लेकिन अहम् रहित कर्म 
नहीं है वर्जित 'मैं'.
हे ईश्वर! तुम ही हो कर्ता
मैं केवल एक साधन 
और समर्पित सब कर्म तुम्हें
कर देता यह भाव 
मुक्त कर्म बंधनों से,
और हो जाता अलोप 'मैं'
और अहम् जनित दुःख।

जब हो जाता तादात्म्य 
अहम् विहीन ‘मैं’ का   
निर्मल स्वत्व से, 
हो जाते मुक्त दुखों से 
और होती प्राप्त परम शांति।

कैलाश शर्मा