मैं स्त्री हूँ ............. या विद्यार्थी
जिसके आगे प्रश्नों का चक्रव्यूह है
सहनशीलता की रिसती दीवारें
नतमस्तक से टपकता खून
"उफ़" - मेरे शब्दकोश में नहीं
चेहरे पर मुस्कान
भीतर ख़ामोशी का प्रलाप
क्योंकि मैं अपने मैं की खानाबदोशी से है बेज़ार !!!
मैं - रश्मि
मैं थी कहाँ
मैं हूँ कहाँ
मुझे जाना कहाँ है
मुझे रहना कहाँ है
घर वह - जो मिला
या घर वह - जो मैंने कहीं भी बना लिया (मुस्कुराकर)
दोस्त कौन दुश्मन कौन
दोस्त - जिसने मुझे मूर्ख बनाया
दुश्मन - जिसने मुझे कुछ माना ही नहीं
फिर भी ........... सब एक जगह
क्यूँ?
अर्थ क्या है
क्या नहीं है
अनर्थ क्या है
और क्यूँ है
अनादर करके
मृत्यु के बाद
तर्पण क्यूँ सम्मान क्यूँ ............. किसे दिखाना है
क्यूँ दिखाना
कौन देखता है
कौन देखना चाहता है !
कितने चेहरे
कितनी भीड़
कौन अपना
कौन पराया
पता है
तो क्या पता है
कैसे पता है
सिद्ध कौन करेगा सच्चाई
सच कौन मानेगा?
चारों तरफ तो गड़े मुर्दे बाहर हैं
जीवित की शिनाख्त कौन करेगा
पैसा दो तो मृत जीवित
जीवित मृत
फिर तलाश किस शक्ल की है
और कब तक ?
जड़ें सूख गईं
या सुखा दी गई हैं
या छलावा है हरियाली
मुश्किलें सुलझती नहीं
तो मुश्किलों की दीवारों का हर दिन निर्माण क्यूँ !!
हम किसे हराना चाहते हैं
जीत जाने से होगा क्या
आज जीत है तो कल हार है
सिलसिला रुका नहीं है
दहशत अजगर की तरह निगल रहा सवालों को
तो उत्तर कौन देगा
किसे देगा
और क्यूँ ?.............
*
जवाब देंहटाएंसिद्ध कौन करेगा सच्चाई
सच कौन मानेगा?
चारों तरफ तो गड़े मुर्दे बाहर हैं
जीवित की शिनाख्त कौन करेगा
!!
ये तो ......
आप अपनी बात लिखीं
या
मेरी हक़ीक़त ब्यान कीं
!!
sidhe dil ko dastak deta samay ki kutil sach......
जवाब देंहटाएंओह ! इतने प्रश्न और उत्तर देने वाला कोई नहीं .....वजूद को संभालना इतना मुश्किल क्यूँ है ...
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढ़कर अभिभूत हूँ .....जैसे सारे प्रश्नों ने मुझे लपेट लिया है .......
बहुत-बहुत-बहुत कमाल का लेखन ....
ओह ! इतने प्रश्न और उत्तर देने वाला कोई नहीं .....वजूद को संभालना इतना मुश्किल क्यूँ है ...
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढ़कर अभिभूत हूँ .....जैसे सारे प्रश्नों ने मुझे लपेट लिया है .......
बहुत-बहुत-बहुत कमाल का लेखन ....
अंतरात्मा को छीलते तराशते बड़े ही मारक प्रश्न हैं रश्मिप्रभा जी ! चहरे पे चढ़ाये हुए महानता के मुखौटे वहीं टिके रहें और सामने वाले गुमराह होते रहें सारी कवायद इसीलिये है ! लेकिन जो सच जानते हैं उनके सामने ये मुखौटे भी काँच की तरह पारदर्शी ही होते हैं ! आपके इन यक्ष प्रश्नों का उत्तर तलाशने को प्रेरित करती बहुत ही अनुपम रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंइतने सारे सवाल है, एक फिर पढ़ना होगा
अच्छी रचना
दहशत अजगर की तरह निगल रहा सवालों को
जवाब देंहटाएंतो उत्तर कौन देगा
किसे देगा
और क्यूँ ?.............
स्वयं मे स्वयं की खोज की जाए बस ....
सशक्त अभिव्यक्ति दी .
हम किसे हराना चाहते हैं
जवाब देंहटाएंजीत जाने से होगा क्या
आज जीत है तो कल हार है
सिलसिला रुका नहीं है
दहशत अजगर की तरह निगल रहा सवालों को
तो उत्तर कौन देगा
किसे देगा
और क्यूँ ?.............
....गहन और शाश्वत प्रश्नों के उत्तर तलाशती बहुत सशक्त रचना....