मैं - तलाश के रास्ते पर
मेरे साथ वंदना गुप्ता - जिनका मैं कभी अर्जुन,कभी कर्ण,कभी अभिमन्यु,कभी पितामह ..................और कभी सारथि बन पूरे रणक्षेत्र की परिक्रमा करता है -
तलाशता है खुद को
प्रश्न भी मैं
उत्तर भी मैं
मैं ही मैं का जौहरी
मार्ग अवरुद्ध कर
काँटे बिछाकर
मैं को तराशता है
मैं को ही गूंगा,बहरा बना
मैं को हीरा बनाता है
.....समय पर मैं गूंगा न हो तो अस्तित्व सिर्फ वाचाल होता है
मैं में ही ब्रह्म
मैं में ही रेगिस्तान ....................तलाश अपनी !!!
मैं - रश्मि प्रभा,
मेरे साथ वंदना गुप्ता - जिनका मैं कभी अर्जुन,कभी कर्ण,कभी अभिमन्यु,कभी पितामह ..................और कभी सारथि बन पूरे रणक्षेत्र की परिक्रमा करता है -
एक पहेली सुलझाने को
जब जब चली
उतना उलझती गयी
ये कौन है
जो बेचैन है
ये कौन है
जो आवाज़ लगाता है
ये कौन है
जो कराहता है
ये कौन है
जो खोज में है
कोई तो है
कोई तो है
कोई तो है
जो मुझमे से मुझे ढूंढता है
सुना है
कोई ईश्वर है
जिसे सब खोज रहे हैं
सुना है
उसकी खोज के बाद
कुछ खोजना बाक़ी नहीं रहता
तो क्या यही है मेरी भी खोज ?
लगता तो नहीं कुछ ऐसा मुझे
होगा कोई ईश्वर कहीं
जिसे देखा नहीं
जाना नही
महसूसा नहीं
फिर कैसे कोई खोज में संलग्न है
खोज के लिए सुना है
कुछ तो निशानियाँ होती है
जिनके सहारे खोज आकार लेती है
और जिसका आकार नहीं
जो निराकार है
उसकी खोज कोई कैसे करे
नहीं नहीं नहीं
ये सूक्ष्म जगत का सूक्ष्म व्यवहार
मेरी तो समझ से है पार
मुझमे कुछ तो है
जो मुझे खोज रहा है
और वो ईश्वर नहीं
इतना जानती हूँ
तो फिर क्या है ?
यही जानना है
खुद से ही इक संवाद करना है
शायद मुझे "मैं " मिल जाऊँ
और सम्पूर्णता पा जाऊँ
फिर कैसी अवधारणा
ईश्वर है या नहीं
साकार है या निराकार
क्या होगा जानकर
क्योंकि
सुना है
सब " मैं " में ही समाहित है
फिर चाहे ईश्वर हो या संसार या ब्रह्माण्ड
एक अणु ही तो है " मैं "
आत्मबोध , आत्मखोज , आत्मविलास
जिस दिन खुद से मुखरित होऊँगी
जिस दिन खुद को जानूँगी
जिस दिन खुद को पहचानूंगी
जिस दिन दृष्टि बदल जायेगी
और दृष्टि में ही सृष्टि समाहित हो जायेगी
उसी दिन , उसी पल , उसी क्षण
मेरी खोज पूर्ण हो जायेगी
जब मेरा " मैं " मुझे मुझमे मिल जाएगा
तब तक पहेली को सुलझाने को प्रयासरत हूँ ............" मैं "
समय पर मैं गूंगा न हो तो अस्तित्व सिर्फ वाचाल होता है
जवाब देंहटाएंजिस दिन खुद को जानूँगी
जिस दिन खुद को पहचानूंगी
जिस दिन दृष्टि बदल जायेगी
जब मेरा " मैं " मुझे मुझमे मिल जाएगा
तब तक पहेली को सुलझाने को प्रयासरत हूँ ............" मैं "
" मैं " ??
वन्दना का जवाब नहीं , निस्संदेह वे इस सम्मान की अधिकारिणी हैं...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें एवं आभार आपको !
मैं ही मैं का जौहरी ..........बिल्कुल सच
जवाब देंहटाएंसमय के साथ ...कभी ''मैं'' की ये तलाश कभी खत्म होगी ??????
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं"मैं कौन हूँ " और "वनफूल " पर एक नजर डालें
http:kpk-vichar.blogsot.in
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
खुद को तलाशने का यह अभियान क्या कभी सफल होता है ! जीवन भर यह खोज अनवरत रूप से जारी रहती है ! बहुत गहन एवँ दार्शनिक अभिव्यक्ति वन्दना जी ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंरश्मि दी मुझे यहाँ स्थान देने के लिये हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएं''मैं'' की ये तलाश कभी खत्म नहीं होगी.... खुबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
bahut hi sundar prastuti
जवाब देंहटाएंनई सोच,
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
सच है सबकुछ मैं में अन्तर्निहित है बस उसमें गहराए से झाँकने की फुर्सत हों ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...नए ब्लॉग देख ख़ुशी हुयी ..हार्दिक शुभकामनायें ....सादर .
ati-sundar kya baat hai
जवाब देंहटाएंजिस दिन दृष्टि बदल जायेगी
जवाब देंहटाएंऔर दृष्टि में ही सृष्टि समाहित हो जायेगी
उसी दिन , उसी पल , उसी क्षण
मेरी खोज पूर्ण हो जायेगी
जब मेरा " मैं " मुझे मुझमे मिल जाएगा
तब तक पहेली को सुलझाने को प्रयासरत हूँ ............" मैं "
....बहुत गहन और सारगर्भित अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर...