आज मेरे साथ 'मैं' की असमंजसता लिए सौरभ रॉय हैं .... क्या यह मैं" मैं ही है
या है कोई गुफा
जहाँ समाधिस्थ कितने सवाल और जवाब हैं
साँसें चलती हैं
रुक जाती हैं
पर मैं का पड़ाव
अहर्निश अखंड यात्रा के साथ है .......
मैं - रश्मि प्रभा
हंसते-हंसते अचानक रुका !
सोचा
किसके साथ मैं क्यों हंसा !
सोचा
ये मेरी शक्ल कैसे !
सोचा
ये मेरी कलम कैसे !
सोचा
ये मेरे मित्र कौन !
सोचा
ये मेरा शरीर कैसे !
सोचा
ये मैं ज़िन्दा कैसे !
सोचा
ये मेरी आँखें कैसे !
सोचा
ये मेरा घर कैसे !
मैं तो इधर गया था
हाँ इधर !
सोचा
तो मैं उधर कैसे !!
- सौरभ राय
वर्ष 1989 में एक शिक्षित बंगाली परिवार में जन्म
झारखण्ड में निवास
बैंगलोर में ब्रोकेड नामक कंपनी में इंजीनियर की नौकरी
तीन काव्य संग्रह प्रकाशित - 'अनभ्र रात्रि की अनुपमा', 'उत्थिष्ठ भारत' एवं 'यायावर'
हिंदी की कई पत्र पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित - हंस, वागर्थ, कृति ऒर, वटवृक्ष इत्यादि
हिंदी काव्य के अलावा अंग्रेजी में भी गद्य लेखन, जिन्हें souravroy.com में पढ़ा जा सकता है
सौरभ राय को जाना
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा
बहुत सार्थक प्रयास
बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित प्रस्तुति को पढ़ कर सौरभ राय को जाना..आभार..
जवाब देंहटाएंसाँसें चलती हैं
जवाब देंहटाएंरुक जाती हैं
पर मैं का पड़ाव
अहर्निश अखंड यात्रा के साथ है ...सच
इस बेहतरीन अभिव्यक्ति को साझा करने के लिए आभार
सादर
गहन प्रस्तुति ! अति सुंदर !
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