मैं एक यज्ञ
आज आपके पास हैं साधना वैद जी .... जिनके मैं' में जीवन का सारांश मिलता है ....
मैं ही यज्ञ की अग्नि
मैं ही संकल्प
मैं ही कर्ता मैं ही हर्ता
मैं ही आहुति
मैं प्राणवायु
मैं मृत्यु की खामोश आहटें
मैं शब्द मैं ख़ामोशी
मैं रेखा मैं चित्र
देखते देखते मैं ही एक खाली कैनवस
अज्ञानता की हद मैं
ज्ञान का मुखर प्रकाश मैं
मैं हन्ता,मैं निर्माता
मैं मर्मज्ञ मैं कुटिल ....... मैं अपने भीतर सारे मैं से भरा हूँ ....... भरा हूँ,पर हम सिर्फ - 'मैं'
मैं - रश्मि प्रभा -
आज आपके पास हैं साधना वैद जी .... जिनके मैं' में जीवन का सारांश मिलता है ....
जब भी अपने
हृदय का बंद द्वार
खोल कर अंदर झाँका है
अपने ‘मैं’ को सदैव सजग,
सतर्क, संयत एवँ दृढ़ता से अपने
इष्ट के संधान के लिये
समग्र रूप से एकाग्र ही पाया है !
ऐसा क्या है उसमें जो वह
सागर की जलनिधि सा अथाह,
आकाश सा अनन्त, धरती सा उर्वर,
वायु सा जीवनदायी व गतिमान एवँ
पवित्र अग्नि सा ज्वलनशील है !
ऐसा क्या है उसमें जो
संसार का कोई भी आतंक
उसे भयभीत नहीं करता,
कोई भी भीषण प्रलयंकारी तूफ़ान
उसे झुका नहीं सकता,
कैसे भी अनिष्ट का भय उसका
मनोबल तोड़ नहीं पाता !
लेकिन जो अपनी अंतरात्मा की
एक चेतावनी भर से सहम कर
निस्पंद हो जाता है,
जो मेरी आँखों में लिखे
वर्जना के हलके से संकेत को
पढ़ कर ही सहम जाता है और
मेरे होंठों पर धरी निषेधाज्ञा की
उँगली को देख अपनी वाणी
खो बैठता है !
मैं जानती हूँ
दुनिया की नज़रों में
मेरा यह ‘मैं’
एक ज़िद्दी, अड़ियल, अहमवादी,
दम्भी, घमण्डी और भी
न जाने क्या-क्या है !
लेकिन क्या आप जानते हैं
मेरा यह ‘मैं’
मेरे आत्मसम्मान का एक
सबसे शांत, सौम्य और
सुदर्शन चेहरा है,
जिस पर मैं अपनी सम्पूर्ण
निष्ठा से आसक्त हूँ !
वह इस रुग्ण समाज में विस्तीर्ण
वर्जनाओं, रूढ़ियों और सड़ी गली
परम्पराओं की गहरी दलदल से
बाहर निकाल मुझे किनारे तक
पहुँचाने के लिये मेरा एकमात्र
एवँ अति विश्वसनीय
अवलंब है !
अपने स्वत्व की रक्षा के लिये
मेरे पास उपलब्ध मेरा इकलौता
अचूक अमोघ अस्त्र है !
मेरी विदग्ध आत्मा के ताप को
हरने के लिये अमृत सामान
मृदुल, मधुर, शीतल जल का
अजस्त्र अनन्त स्त्रोत है !
मुझे कोई परवाह नहीं
लोग मुझे क्या समझते हैं
लेकिन मेरी नज़रों में मेरी पहचान
मेरे अपने इस ‘मैं’ से है
और निश्चित रूप से मुझे
अपनी इस पहचान पर गर्व है !
जिस दिन मेरी नज़र में
इस ‘मैं’ का अवमूल्यन हो जायेगा
वह दिन मेरे जीवन का
सर्वाधिक दुखद और कदाचित
अंतिम दिन होगा क्योंकि
मुझे नहीं लगता उसके बाद
मेरे जीवन में ऐसा कुछ
अनमोल शेष रह जायेगा
जिस पर मैं अभिमान कर सकूँ !
साधना वैद
bahut sundar .....
जवाब देंहटाएंmain hi main hoon..
जवाब देंहटाएंbehtareen....
मैं एक यज्ञ
जवाब देंहटाएंमैं ही यज्ञ की अग्नि
मैं ही संकल्प
........... मैं ही मैं का संयम और मैं ही मैं का तप
वैसे तो साधना जी को हम सब जानते है।
जवाब देंहटाएंलेकिन आपके नजर जानने का एक अलग अनुभव है।
बहुत सुंदर सिलसिला चल रहा है।
ये कारवां यूं ही चलता रहे..
मैं ही मैं इस मैं का कहीं अंत नही जीवन का सारांश भी मैं.. मैं का कारवां यूं ही चलता रहे..
जवाब देंहटाएंयदि मैं नहीं तो अस्तित्व नहीं ..... बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंरश्मिप्रभा जी ! आपने मेरी रचना को यहाँ पब्लिश कर उसका माँ बढ़ाया आपकी हृदय से आभारी हूँ ! उन सभी पाठकों का धन्यवाद जो इसे पढ़ रहे हैं और मुझे अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से उपकृत कर रहे हैं !
जवाब देंहटाएंअज्ञानता की हद मैं
जवाब देंहटाएंज्ञान का मुखर प्रकाश मैं
मैं हन्ता,मैं निर्माता
मैं मर्मज्ञ मैं कुटिल ....... मैं अपने भीतर सारे मैं से भरा हूँ ....... भरा हूँ,पर हम सिर्फ - 'मैं'
....अद्भुत...
इस ‘मैं’ का अवमूल्यन हो जायेगा
वह दिन मेरे जीवन का
सर्वाधिक दुखद और कदाचित
अंतिम दिन होगा क्योंकि
मुझे नहीं लगता उसके बाद
मेरे जीवन में ऐसा कुछ
अनमोल शेष रह जायेगा
जिस पर मैं अभिमान कर सकूँ !
....बहुत सार्थक और गहन अभिव्यक्ति...
यह श्रंखला यूँ ही आगे बढ़ती रहे...आभार
सबका अपना मैं ही उनका सच्चा आइना है | हम अपने को अपने मैं मेंही खोजे जैसा आपने किया |मुझे बहुत पसंद आया और आपके एक और रूप से परिचित होने का अवसर भी मिला|
जवाब देंहटाएंअपना अहम् मैं के माध्यम से बहुत सुन्दर शब्दों में ढली रचना |भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
जवाब देंहटाएंमैं क्या नहीं करवाता है जीवन में
जिस दिन इसका लोभ कम हो जायेगा
मनुष्य सहज सरल हो जायेगा
सुंदर रचना
सादर