मैं' एक आगाज़
मैं' शंखध्वनि
मैं' यज्ञवेदी
मैं' प्रकृति
मैं' वह अस्तित्व
जो माँ को पुकारता है
मैं' उद्घोष
मैं' रिश्तों का पहला सूत्र ............. तो करते हैं मैं का आगाज़ हम !
मैं - रश्मि !
यदि 'मैं'नहीं होना चाहिए
तो मैं है क्यूँ !
पर यदि मैं ना हो
तो तुम कैसे,हम कैसे !
मैं से ही आरम्भ है
मैं ही कहता है
'तुम मेरे साथ चलो'
फिर 'हम' का कारवाँ बनता है
बात आगे बढती है ...
'मैं' सिर्फ दंभ ही नहीं
एक विश्वास भी है
एक आग भी है
सत्य का हिमायती
परिवर्तन का आगाज़ भी है !
पहचान मैं से है
योगदान मैं से है
उपस्थिति मैं से
.......... नाम ही मैं से जुड़ा है
पद मैं से जुड़ा है
मैं यदि एकलव्य है
तो हम एकलव्य नहीं होते
..... क्षमता मैं की है
ताकत भी मैं की
संकल्प भी मैं का ..........
मैं को खत्म कर दोगे
तो न आविष्कार होगा
न अलग अलग रिश्तों की पहचान
मात्र अहम् के भय से मैं को खत्म कर देना
परिस्थितियों के विकल्प को खत्म कर देना है !
.... मैं ईश्वर ही है
जिसका प्रतिनिधत्व शरीर करता है
शरीर दम्भी होता है
असुर होता है
'मैं' हमेशा रोकता है
शरीर की ज़िद से ही आहत
'मैं' ने यानि ईश्वर ने उसे नश्वर बनाया
'मैं' का विनाश नहीं होता
'हम' की डोर टूट भी जाये
'मैं' जिंदा रहता है ......... मैं' अमर है !!!
मैं का आगाज़... इतने खूबसूरत अन्दाज़ में !!!!
जवाब देंहटाएंबधाई सहित अनंत शुभकामनाएँ
सादर
behtreen ...swym ki hi khoj!!!!!
जवाब देंहटाएंमैं का सकारातमक रूप .......और नकारात्मक रूप दोनों होते हैं " अति सर्वत्र वर्ज्यते " इसी लिय कहा गया था
जवाब देंहटाएंपरन्तु " मैं " में विस्श्वास बनाये रखना चाहिए .
बहुत खूब कहा आपने
'मैं' सिर्फ दंभ ही नहीं
एक विश्वास भी है
एक आग भी है
सत्य का हिमायती
परिवर्तन का आगाज़ भी है !
मैं' का विनाश नहीं होता
जवाब देंहटाएं'हम' की डोर टूट भी जाये
'मैं' जिंदा रहता है ......... मैं' अमर है !!!
....बहुत सार्थक चिंतन..उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
सच कहा रश्मिजी अगर "मैं" न होता ...तो अविष्कार न होते ....दर्शन न होता ....विवेकानंद न होते बुद्ध न होते ....सिर्फ एक लकीर होती ...और हम उसके फ़कीर होते
जवाब देंहटाएंमैं' का विनाश नहीं होता
जवाब देंहटाएं'हम' की डोर टूट भी जाये
'मैं' जिंदा रहता है ......... मैं' अमर है !!!………
" मैं" को परिभाषित करती रचना चिन्तन को प्रेरित करती है
आपने रश्मि प्रभा जी सही लिखा है ,,बधाई आपको
जवाब देंहटाएं"मैं ..हाँ
सिर्फ ..सिर्फ 'मैं" हैं
सब तरफ ..सभी दिशाओं मे
मैं ..केवल मैं ही सत्य हैं
अहंकार ..धन का ,पद का ,रूप का ,धर्म का ,जाति का
पुरुष या नारी होने का ,रंग का ,...हो सकता हैं
मैं विशेषणों से परे हैं
"मैं ..हाँ
सिर्फ ..सिर्फ 'मैं" हैं
मैं न कभी मरता हैं न कभी जन्मता हैं
वह मैं जो साक्षी हैं ..जो तटस्थ
किशोर
यही 'मैं' तो श्लाघनीय है , वन्दनीय है, पूजनीय है क्योंकि यह अनेक विश्वासों का प्रतिफलन है और अनेकों विकारों का दमनकर्ता है ! बहुत ही अनुपम एवँ आनंददायी आरम्भ है रश्मिप्रभा जी ! अनन्त शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमै कभी मरता नहीं अमर,अन्नंत है मै,नमस्कार रश्मि प्रभा जी
जवाब देंहटाएंवयष्टि है तभी तो समष्टि है....
जवाब देंहटाएंसोच रही थी लेखनी क्या रचने में जुटी होगी ........
जवाब देंहटाएंकल्पना के बाहर की रचियता हैं आप
हार्दिक शुभकामनायें
और मैं कौन????
जवाब देंहटाएंएक सवाल कौंधा अभी अभी.....
क़दमों के निशान बनाते चलिए.....आसानी होगी हमें.
सादर
अनु
खूबसूरत साज-सज्जा के साथ एक धमाकेदार आगाज़ .. बधाई दूं अपनी दीदी को कि परमात्मा उनकी यह स्फूर्ति सदा बनाए रखे... कविता एक बार फिर से आपकी ट्रेड मार्क है.. इस पर कुछ भी कहने के लिए मुझे कविता लिखनी होगी.. इसके कमेन्ट में या इसके जवाब में!!
जवाब देंहटाएंबधाई दीदी.. बहुत अच्छी कविता!! बहुत ही प्रेरक!!
आज की ब्लॉग बुलेटिन तुम मानो न मानो ... सरबजीत शहीद हुआ है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएं'मैं' सिर्फ दंभ ही नहीं
जवाब देंहटाएंएक विश्वास भी है
एक आग भी है
सत्य का हिमायती
परिवर्तन का आगाज़ भी है ....बहुत गहन सार्थक, कल्पना के बाहर का चिंतन..
" मैं " की एक अच्छा सकारात्मक परिभाषा जो प्रेरित करती यह जानने के लिए 'मैं कौन ?" इधर भी नजर डाले
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
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जब दो व्यक्तियों के बीच मैं आता है तो अहम कहलाता है ..... लेकिन व्यक्तिगत रूप में मैं कि सारगर्भित परिभाषा दी है .... बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ..'.मैं 'की अभिव्यक्ति ....कुछ पंक्तियाँ अरसा पहले लिखी थी ....इसी मैं को लेकर कुछ भाव ...आपने उन्हें अलग रूप मे परिभाषित किया .....संगीता जी ने जैसा कहा ...दो के बीच "मैं " अहम का स्रोत लेकिन खोज कर उतरने पर इसका स्वरूप कुछ और ही ....बधाई इस शुरुआत के लिए
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