मैं ही जीतता है मैं ही हारता है
मैं ही जुड़ता है
मैं ही तोड़ता है
मैं न चाहे तो एकता कैसी
परिवर्तन कैसा
दो मैं के एकाकार होने में सृष्टि है
मैं को अपमानित मत करो
मैं चला गया
तो सब गया
मैं से ही है सबकुछ और नहीं भी है .............................. ..
मैं - रश्मि प्रभा
आज के अस्तित्व की कड़ी में श्री कैलाश शर्मा - अनुभवों के ब्रह्माण्ड के साथ -
‘अहम् ब्रह्मास्मि’
नहीं है सन्निहित
कोई अहंकार इस सूत्र में,
केवल अक्षुण विश्वास
अपनी असीमित क्षमता पर.
‘मैं’ ही व्याप्त समस्त प्राणी में
‘मैं’ ही व्याप्त सूक्ष्मतम कण में
क्यों मैं त्यक्त करूँ इस ‘मैं’ को,
करें तादात्म जब अपने इस ‘मैं’ का
अन्य प्राणियों में स्थित ‘मैं' से
होती एक अद्भुत अनुभूति
अपने अहम् की,
नहीं होता अहंकार या ग्लानि
अपने ‘मैं’ पर.
असंभव है आगे बढ़ना
अपने ‘मैं’ का परित्याग कर के,
यही ‘मैं’ तो है एक आधार
चढ़ने का अगली सीढ़ी ‘हम’ की,
अगर नहीं होगा ‘मैं’
तो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
सब बिखरने लगेंगे
उद्देश्यहीन, आधारहीन दिवास्वप्न से.
‘मैं’ केवल जब ‘मैं’ न हो
समाहित हो जाये उसमें ‘हम’ भी
तब नहीं होता कोई कलुष या अहंकार,
दृष्टिगत होता रूप
केवल उस ‘मैं’ का
जो है सर्वव्यापी, संप्रभु,
और हो जाता उसका ‘मैं’
एकाकार मेरे ‘मैं’ से
असंभव है यह सोचना भी
कि नहीं कोई अस्तित्व ‘मैं’ का,
यदि नहीं है ‘मैं’
तो नहीं कोई अस्तित्व मेरा भी,
‘मैं’ है नहीं मेरा अहंकार
‘मैं’ है मेरा विश्वास
मेरी संभावनाओं पर
मेरी क्षमता पर,
जो हैं सन्निहित सभी प्राणियों में
जब तक है उनको आभास
अपने ‘मैं’ का.
कैलाश शर्मा
‘मैं’ है नहीं मेरा अहंकार
जवाब देंहटाएं‘मैं’ है मेरा विश्वास
मेरी संभावनाओं पर
मेरी क्षमता पर,
जो हैं सन्निहित सभी प्राणियों में
जब तक है उनको आभास
अपने ‘मैं’ का.
वाह ...बहुत सुंदर व्याख्या
मैं’ केवल जब ‘मैं’ न हो
जवाब देंहटाएंसमाहित हो जाये उसमें ‘हम’ भी
तब नहीं होता कोई कलुष या अहंकार
....
अनुपम भाव संयोजन ... इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं‘मैं’ ही व्याप्त समस्त प्राणी में
जवाब देंहटाएं‘मैं’ ही व्याप्त सूक्ष्मतम कण में
क्यों मैं त्यक्त करूँ इस ‘मैं’ को, ...इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार..
दो मैं के एकाकार होने में सृष्टि है
जवाब देंहटाएंमैं को अपमानित मत करो
मैं चला गया
तो सब गया
मैं से ही है सबकुछ और नहीं भी है ............
...बहुत गहन सन्देश...
मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार रश्मि जी...
gahan abhiwayakti ....
जवाब देंहटाएंगहन भावपूर्ण अनुभूति लिए बेहतरीन रचना,आभार.
जवाब देंहटाएं‘मैं’ केवल जब ‘मैं’ न हो
जवाब देंहटाएंसमाहित हो जाये उसमें ‘हम’ भी................बहुत उपयोगी कविता।
बहुत सुन्दर रचना .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गहन भावपूर्ण व्याख्या
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना |
जवाब देंहटाएंअति उत्तम रचना
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव लिए बेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंआभार .........
मैं है तो सब है... मैं नहीं कुछ भी नहीं. जीवन दर्शन की गहरी समझ, बधाई.
जवाब देंहटाएंबिलकुल ही स्वतंत्र सोच ...सोचने पर मजबूर करती .......वाह
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