मैंने देखा है 'मैं' को हर बार
दिन के कोलाहल में चुप
आधी रात को टहलता हुआ
दीवारों पर अनकहे ख्यालों को उकेरता हुआ
झूठ से स्वगत करता
.............................. .............'मैं' के साथ कोई 'हम' नहीं होता, मैं के साथ आना है,मैं के साथ जाना है और यही सत्य है ...
मैं - रश्मि प्रभा 'मैं' के साथ
मैंने थाम ली ऊँगली जब "मैं" की
तब जाना बुद्ध को
समझा कृष्ण को ...
मैंने तो "मैं' के धरातल पर रामराज्य स्थापित किया था
एकलव्य सी निष्ठा जगाई थी
पर ...!!!
कर्ण की दानवीरता सीख कवच गँवा दिया
तब हारकर कृष्ण का छल अपनाया
"मैं" को कुरुक्षेत्र बना
"मैं" की सेना बनाई
एक मैं' कौरव
एक मैं' पांडव
सारथि कृष्ण यानि सत्य !
सत्य अपमानित वचन सुनकर
रिश्तों से टूटकर
अलग होकर
बिलखकर भी दम नहीं तोड़ता
वह कर्ण की मृत्यु को भी आत्मसात करता है
क्योंकि असत्य के संहार के लिए
कई मोहबंध छोड़ने होते हैं
हाँ -
मोह 'मैं' के पैरों की जंजीर है
जिसे तथाकथित समाज के डर से
घुंघरू की तरह बाँधकर मृत 'मैं' भटकता है
जीने के लिए मैं' को स्वत्व मंत्र का जाप करना होता है
मैं" को यज्ञकुंड बना
अपनी कमजोरियों की आहुति देनी होती है
मैं' को प्रबल बना पुख्ते रास्ते बनाने होते हैं
ताकि ज़िन्दगी कुछ सुना सके
आनेवाले 'मैं' को .............
पर ...!!!
जवाब देंहटाएंकर्ण की दानवीरता सीख कवच गँवा दिया
तब हारकर कृष्ण का छल अपनाया
"मैं" को कुरुक्षेत्र बना
"मैं" की सेना बनाई
एक मैं' कौरव
एक मैं' पांडव
सारथि कृष्ण यानि सत्य !
बहुत सुंदर ..... मैं के महत्त्व को कहती सुंदर रचना ।
जीने के लिए मैं' को स्वत्व मंत्र का जाप करना होता है
जवाब देंहटाएंमैं" को यज्ञकुंड बना
अपनी कमजोरियों की आहुति देनी होती है
मैं' को प्रबल बना पुख्ते रास्ते बनाने होते हैं
ताकि ज़िन्दगी कुछ सुना सके
आनेवाले 'मैं' को .............
....सच में 'मैं' के भविष्य के लिए 'मैं' को सशक्त बनना होता है...बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..
is "main" ne hi to sara jag banaya, bigada bhi.
जवाब देंहटाएंbahur badhiya.
सत्य अपमानित वचन सुनकर
जवाब देंहटाएंरिश्तों से टूटकर
अलग होकर
बिलखकर भी दम नहीं तोड़ता
वह कर्ण की मृत्यु को भी आत्मसात करता है
क्योंकि असत्य के संहार के लिए
कई मोहबंध छोड़ने होते हैं
हाँ -
मोह 'मैं' के पैरों की जंजीर है ....बहुत सुंदर
आपके मैं से
जवाब देंहटाएंमेरी मैं
प्रज्वलित हो गई
आभार
जीने के लिए मैं' को स्वत्व मंत्र का जाप करना होता है
जवाब देंहटाएंमैं" को यज्ञकुंड बना
अपनी कमजोरियों की आहुति देनी होती है
मैं' को प्रबल बना पुख्ते रास्ते बनाने होते हैं
ताकि ज़िन्दगी कुछ सुना सके
आनेवाले 'मैं' को .........
....सच में 'मैं' का अस्तित्व बचाने के लिए सशक्त करना होता है अपने 'मैं' को...बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
....'मैं' के विभिन्न रूपों और आयामों से परिचित कराने के लिए एक अद्भुत ब्लॉग प्रारंभ करने के लिए बहुत बहुत आभार...हरेक रचना जितनी बार पढो, एक नया अर्थ देती है 'मैं' को..
मैंने २ बार कमेंट दिये हैं, उस समय ब्लॉग पर दिखाई देते हैं. पता नहीं बाद में क्यूँ गायब हो जाते हैं. क्या वे स्पैम में तो नहीं हैं?
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27/06/2013 को चर्चा मंच पर होगा
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
धन्यवाद
मैं" को यज्ञकुंड बना
जवाब देंहटाएंअपनी कमजोरियों की आहुति देनी होती है
मैं' को प्रबल बना पुख्ते रास्ते बनाने होते हैं
ताकि ज़िन्दगी कुछ सुना सके
आनेवाले 'मैं' को ............
....सच में अपना 'मैं' कितना कमजोर पड जाता है मोह के बंधन में और इसको सशक्त बना कर ही रास्ता दिखलाया जा सकता है आने वाले 'मैं' को...बहुत गहन और उत्कृष्ट प्रस्तुति...
(पता नहीं मेरे पहले २ कमेंट किस 'मैं' की भीड़ में गम हो गए.)
दिल को छूने वाली रचना ...
जवाब देंहटाएंमैं के इस वर्णन को पढ़कर लगा कि वाकई मैं को चित्रित करना खुद की सोच को उकेरना है और जब इमानदारी से मैं को उकेरा जाता है तो आत्मसंतोष मिलता है .
जवाब देंहटाएंइस मैं को ही तो थामना होता है ... इसे थाम लिया तो ये कृष्ण भी है बुद्ध भी है .... और सिर्फ मैं भी है ... गहरी रचना ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन .
जवाब देंहटाएंकुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की ५५० वीं बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन की 550 वीं पोस्ट = कमाल है न मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंइस 'मैं' का विस्तार किसका कहाँ से कहाँ तक है -कृष्ण का 'मैं' या दुर्योधन का जिससे व्यक्तित्व का निर्धारण संभव हो !
जवाब देंहटाएं